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368... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
पंचम विधि
ऊपर उठे
पाँचवें प्रकार में बायां हाथ दायें हाथ के ऊपर रहता है तथा अंगूठे 450° हुए और एक-दूसरे के अग्रभाग को स्पर्श करते हुए रहते हैं | 59 शेष वर्णन पूर्ववत । षष्ठम् विधि
इस छठवें प्रकार में तर्जनी के प्रथम एवं द्वितीय पोर पृष्ठ भाग से स्पर्श करते हुए एवं ऊपर उठे हुए रहते हैं, अंगूठों के अग्रभाग तर्जनी के अग्रभाग से स्पर्शित रहते हैं तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका फैलाई हुई एवं गोद में धारण की हुई रहती है 100 शेष वर्णन पूर्ववत ।
जी-इन् मुद्रा - 6
सुपरिणाम
• इस मुद्रा का प्रयोग वायु एवं आकाश तत्त्व का संतुलन करते हुए हृदय रुधिराभिसंचरण, शारीरिक संतुलन तथा हार्ट अटैक, लकवा आदि रोगों का निवारण करता है। • आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र का जागरण करते हुए यह मुद्रा व्यक्ति को ज्ञानी, पंडित, कवि, शान्तचित, निरोगी, शोकहीन एवं दीर्घ जीवी