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246... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
सुपरिणाम
रत्नप्रभा मुद्रा • यह मुद्रा पृथ्वी, जल एवं वायु तत्त्वों में संतुलन स्थापित करती है। इनके संयोग से शरीर का संतुलन बना रहता है। यह शरीर के ठोस तत्त्व हड्डियों, मांसपेशियों, त्वचा, नाखुन, रक्त, वीर्य, लसिका, मल-मूत्र, प्राण वायु आदि में संतुलन स्थापित करती है। • इस मुद्रा से मूलाधार, अनाहत एवं स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होते हैं। जिससे आभ्यंतर शक्तियों का ऊर्ध्वारोहण, मानसिक एवं बौद्धिक स्थिरता और एकाग्रता की प्राप्ति होती है। • यह मुद्रा गोनाड्स एवं थायमस ग्रंथियों को सक्रिय करती है। यह विशेष रूप से बालकों के विकास एवं उत्साह वर्धन में कार्यकारी है तथा अनहद आनंद एवं शांति की अनुभूति करवाती है। 56. रेंजे-केन्-इन् मुद्रा
उपर्युक्त बौद्ध मुद्रा छः तत्त्व मुष्ठि मुद्राओं में से एक है। यह कमल के कलि की सूचक है तथा इस मुद्रा को छाती के स्तर पर एक हाथ से करते हैं। शेष पूर्ववत।