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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप...197
विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के समीप करें, मध्यमा और कनिष्ठिका को परस्पर में गुंफित करें, तर्जनी और अनामिका को थोड़ा सा मोड़ते हुए उनके अग्रभागों का एक-दूसरे से स्पर्श करवायें तथा दोनों अंगूठों की बाह्य किनारियाँ परस्पर संयुक्त रहने पर अनुचित्त मुद्रा बनती है।20
अनुचित्त मुद्रा
सुपरिणाम
• अनुचित्त मुद्रा धारण करने से अग्नि तत्त्व संतुलित होता है। यह पाचन तंत्र को संतुलित करते हुए क्रोधादि आवेगों को शांत करती है। • यह मुद्रा मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए शरीर में रक्त, शर्करा, जल, सोडियम, अग्नि आदि तत्त्वों को संतुलित रखती है। इससे तनाव नियंत्रण एवं चारित्र विकास भी होता है। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार शर्करा, रक्तचाप, प्राणवायु, पाचक रसों के संतुलन में यह मुद्रा बहु उपयोगी है।