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192... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
अभिद-बुत्सु-सेप्पी-इन् मुद्रा-6 रहती है। इसमें भी पूर्व मुद्रावत दायें हाथ की अंगुलियाँ ऊपर की ओर तथा बायें हाथ की अंगुलियाँ नीचे की तरफ रहती है।16 सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं आकाश तत्त्वों को संतुलित करती है। इससे रक्त, वीर्य, लसिका, मल-मूत्र आदि के विकार ठीक होते हैं तथा नि:स्वार्थ भावों का जागरण होता है। • यह मुद्रा अनाहत एवं आज्ञा चक्र को प्रभावित करते हुए आन्तरिक गुणों को जागृत करती है। • आनंद एवं दर्शन केन्द्र को सक्रिय एवं संतुलित करते हुए यह मुद्रा भावों को निर्मल एवं परिष्कृत करती है तथा कामवासना एवं क्रोधादि कषायों का उपशमन करती है। 15. अन्-आय-इन् मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा जापान में अन्-आय-इन्, चीन में अन्-वेइ-यिन् और भारत में वितर्क मुद्रा के नाम से जानी जाती है। इसे जापानी बौद्ध परम्परा के धर्मगुरु और श्रद्धालु वर्ग प्रसंग विशेष पर अपनाते हैं।