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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...191
अभिद-बुत्सु-सेप्पी-इन् मुद्रा-5 सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व का संतुलन कर स्वस्थ शरीर का निर्माण करती है। • यह मुद्रा मूलाधार एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए इन्द्रिय निग्रह, वक्तृत्व एवं कवित्व शक्ति आदि में वर्धन करती है। • एक्युप्रेशर स्पेशलिस्ट के अनुसार यह मुद्रा विशेष रूप से थायमस एवं यौन ग्रंथियों को प्रभावित करती है। इससे बालकों के विकास में गति आती है और उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। 14. अभिद-बुत्सु-सेप्यौ-इन् मुद्रा-6
उपर्युक्त मुद्रा का यह छठवाँ प्रकार मध्यम वर्ग के उत्तम जीवन के लिए है। शेष वर्णन पूर्ववत समझें। विधि
इस मुद्रा में अंगूठे के प्रथम पोर को तर्जनी के प्रथम पोर से स्पर्श करवाते हैं, मध्यमा और अनामिका हथेली तरफ झुकी हुई और कनिष्ठिका ऊपर उठी