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बारह द्रव्य हाथ मिलन सम्बन्धी मुद्राओं का प्रभावी स्वरूप ...157 विधि
दोनों हथेलियों को नीचे की ओर अभिमुख करें, फिर अंगुलियों को हल्का सा तिरछा करते हुए आगे की ओर करें तथा दोनों अंगूठे अपनी लंबाई का स्पर्श करते हुए रहने पर फुकुशु-गस्सहौ मुद्रा बनती है।
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फुकुशु गस्सती मुद्रा
सुपरिणाम ___ • यह मुद्रा वायु एवं चेतन तत्त्व को संतुलित करती है। इससे गैस संबंधी विकृतियों का निवारण, कुपित वायु आदि का शमन होता है तथा व्यक्ति अन्तर जगत की ओर अभिमुख होता है। • आज्ञा एवं सहस्रार चक्र को जागृत कर यह मुद्रा स्वभाव को आनंदमय और आत्मा को संशय-विपर्यय से रहित कर असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति करवाता है। . ज्योति एवं ज्ञान केन्द्र को सक्रिय कर यह मुद्रा क्रोधादि कषायों को नियंत्रित, चिन्तन शक्ति को विकसित एवं ज्ञानोपलब्धि करवाती है।