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62... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन बायाँ हाथ शिथिल एवं अधोमुख रूप से गोद में रखा हुआ रहे, इस भाँति 'पेंग् फ्रतब्र खनन् मुद्रा' बनती है।20।
इस मुद्रा के दो प्रकार हैं। दूसरे प्रकार में दोनों हाथ आशीर्वाद के समान रहते हैं। भारत में इस प्रकार को कूर्पर-कूपर मुद्रा कहते हैं।21
पेंग्-फतले खनन् मुद्रा
सुपरिणाम
• अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा जोश, उत्साह एवं उल्लास भाव का वर्धन करती है। इसी के साथ बेहोशी, मस्तिष्क सम्बन्धी अव्यवस्था, तनाव, नेत्र दृष्टि की कमजोरी, मोतियाबिंद आदि तकलीफों को शांत रखती है। • मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह शरीरगत रक्त, शर्करा, जल, सोडियम का नियंत्रण करती है • एक्युप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार यह मुद्रा एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज पर दबाव डालते हुए रक्तचाप, पित्त, ऍसिडिटी, उल्टी, सिरदर्द, कमजोरी, शराब की लत छुड़वाने आदि में भी सहयोगी है।