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________________ अध्याय-2 हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों में प्रयुक्त मुद्राओं का प्रासंगिक स्वरूप प्रत्येक धर्म संप्रदाय का प्राण तत्त्व है उसकी पूजा-उपासना । विविध स्थानों एवं हजारों लोगों द्वारा आचरण में एकरूपता रखने हेतु उसकी एक विशिष्ट प्रक्रिया निर्दिष्ट की है। इस प्रक्रिया में मुद्रा प्रयोग का स्वतंत्र स्थान है। हिन्दू परम्परा के विविध धार्मिक कार्य जैसे सूर्य नमस्कार, मंत्र स्नान पूजा आदि में अनेकशः मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। परंतु अधिकांश आर्य वर्ग इससे अनभिज्ञ हैं। मात्र पूर्व परम्परा अनुकरण के रूप में यह विधान सम्पन्न किए जाते हैं। ऋषि मुनियों द्वारा प्ररूपित इन विधानों में अनेक वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक रहस्य समाए हुए हैं जो हमारे मन, मस्तिष्क एवं शरीर को विशेष प्रभावित करते हैं। हिन्दू परम्परा आर्य संस्कृति का मूल आधार है। संपूर्ण विश्व में इसकी एक विशिष्ट पहचान है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हिन्दू मुद्राओं का उल्लेख इस अध्याय में कर रहे हैं। 1. अंचित मुद्रा यह धार्मिक मुद्रा हिन्दू परम्परा में अधिक प्रचलित है। यह भगवान शिव की चतुरम नृत्य की मुद्राओं में से एक है। इसे एक हाथ से धारण करते हैं। इस मुद्रा के द्वारा मुख में उभरे भावों को व्यक्त किया जाता है। विधि दायें हाथ को कप की भाँति इस तरह बनायें जैसे हाथ में कोई वस्तु पकड़ी हुई हों। अंगुलियाँ बाहर की ओर जाती हुई एवं हथेली की ओर झुकी हुई एक-दूसरे से दूर रहें। इस तरह अंचित मुद्रा बनती है । 1
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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