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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप... ...301
विधि
बायें हाथ को पिंडली अर्थात जंघा पर आरामदायक स्थिति में रखना उरूसंस्थित मुद्रा है।37
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- जल, अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य केन्द्र, तैजस केन्द्र एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, नाक, कान, गला, मुंह एवं स्वर यंत्र ।
24. उत्तराबोधि मुद्रा
शब्द स्वरूप के अनुसार यह मुद्रा भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्ति के बाद के जीवन को दर्शाती है।
मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह मुद्रा मोक्ष अथवा निपुणता की सूचक हैं
उत्तराबोधि मुद्रा