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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......297 लोक व्यवहार में तर्जनी अंगुली का उपयोग किसी को दर्शाने या सूचित करने के लिए किया जाता है। निम्न मुद्रा चित्र में कथित भाव बिल्कुल स्पष्ट हो रहे हैं। लाभ
चक्र- मूलाधार एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व केन्द्रशक्ति एवं तैजस केन्द्र प्रन्थि- प्रजनन, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, यकृत, तिल्ली, आँते पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान। द्वितीय प्रकार
तर्जनी मुद्रा के दूसरे प्रकार में बायीं हथेली आगे की तरफ, तर्जनी अंगुली भूमि से समानान्तर सीधी फैली हुई, तीनों अंगुलियाँ हथेली में मुड़ी हुई तथा अंगठे का प्रथम पोर तर्जनी के द्वितीय पोर को स्पर्श किया हआ रहता है।
यह मुद्रा कंधों के नीचे धारण की जाती है। इन दोनों प्रकारों में थोड़ा सा ही अन्तर है।
तर्जनी मुद्रा-2