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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......295 हल्की सी मुड़ी हुई और अंगूठा अंगुलियों से 90° पर हल्का सा मुड़ा हुआ रहता है।31
स्वस्तिक मुद्रा-3
लाभ
चक्र- विशुद्धि, अनाहत एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- वायु एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड, थायमस एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्रविशुद्धि, आनंद एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे। . 21 तर्जनी मुद्रा
अंगूठे की समीपवर्ती अंगुली तर्जनी कहलाती है। मुद्रा योग की परम्परा में तर्जनी मुद्रा के तीन प्रकार प्राप्त होते हैं उनमें से एक बौद्ध परम्परा में एवं दो