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हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
दायीं हथेली को आँखों के सामने रखते हुए अंगूठा और कनिष्ठिका के अग्रभाग को इस तरह मिलायें कि बीच में गोला बन सके तथा शेष अंगुलियों को ऊपर दिशा में फैलाने पर नेत्र मुद्रा बनती है । 18
लाभ
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चक्र- आज्ञा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - पीयूष एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र - दर्शन एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली।
द्वितीय प्रकार
दूसरे प्रकार में दोनों नेत्र दर्शाये जाते हैं।
इस मुद्रा में दोनों हथेलियों को आँखों के सामने रखें, फिर अंगूठा और कनिष्ठिका के अग्रभागों को बीच में गोला बनाते हुए मिलायें, शेष अंगुलियों को ऊर्ध्व दिशा में फैलायें तथा दोनों हाथों से बनी नेत्राकृति को जोड़ देने पर द्वितीय नेत्र मुद्रा रचती है। 19
नेत्र मुद्रा - 2