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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......271 है। यह मुद्रा आग के कटोरे को पकड़े हुए के भाव दर्शाती है। विधि
बायें हाथ को ऊर्ध्वाभिमुख करते हुए अंगुलियों को हल्के से इस भाँति मोड़ें जो अर्धचन्द्र को सूचित करती हो तथा अंगूठे से अंगुलियों को 90° समकोण पर रखना, अर्धचन्द्र मुद्रा है।
यह अंचित मुद्रा के समान प्रतीत होती है।
अर्द्धचन्द्र मुद्रा लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क। 5. अर्धाञ्जली मुद्रा
इस मुद्रा में अंजलि के प्रतीक रूप में एक ही हाथ का प्रयोग किया जाता है इसलिये इसे अर्धाञ्जली मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा बौद्धों की अपेक्षा हिन्दू परम्परा में अधिक प्रचलित है।