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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...257 प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँते, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ एवं रक्त संचरण तंत्र। 4. सर्व विक्षोभ मुद्रा
मध्यमां मध्यमे कृत्वा, कनिष्ठांगुष्ठ रोधिते । तर्जन्यौ दण्डवत् कृत्वा, मध्यमोपर्यनामिके ।। क्षोभाभिधानामुद्रेयं,
सर्वसंक्षोभकारिणी ।। दायीं मध्यमा को बायीं मध्यमा से योजित करते हुए कनिष्ठिकाओं को अंगूठों से आक्रमित करें, फिर अनामिकाओं को मध्यमा के पृष्ठ भाग पर लगायें तथा तर्जनियों को सीधा रखने पर सर्व विक्षोभ मुद्रा बनती है।
अंचित मुद्रा सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व केन्द्रतैजस एवं शक्ति केन्द्र प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, मेरूदण्ड, गुर्दे।