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248... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में 8. आरोग्य-लाभ, स्नेह, मैत्री, पुष्टि, प्रभा आदि की प्राप्ति के लिए तर्जनी
और अनामिका को संयुक्त कर आहति देने से सफलता मिलती है। इस
तरह भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की अपेक्षा आहुति मुद्रा भी अनेक होती हैं। सुपरिणाम
चक्र- आज्ञा, मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- आकाश, पृथ्वी एवं वायु तत्त्व केन्द्र- ज्योति, शक्ति एवं विशुद्धि केन्द्र ग्रन्थि- पीयूष, प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, कान, नाक, गला, मुँह एवं स्वर यंत्र। 8. आवशिष्टिका मुद्रा ___अवशिष्ट का अर्थ है- बची हुई सामग्री या वस्तु। इस मुद्रा में सब प्रकार के होम में शेष रही हुई सामग्री को पहले किसी शुद्ध पात्र में एकत्रित कर, फिर उसे दोनों हाथों में गृहीत कर अग्नि में छोड़ते हैं। यही मुद्रा आवशिष्टिका मुद्रा कहलाती है।
आवशिष्टिका मुद्रा