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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...241 5. सूर्य प्रदर्शनी मुद्रा
दोनों हाथों को आमने-सामने कर बायीं तर्जनी को दायीं कनिष्ठिका से और दायीं तर्जनी को बायीं कनिष्ठिका से पकड़ें। इसी भाँति बायीं मध्यमा और अनामिका को दायें अंगूठे से तथा दायीं मध्यमा और अनामिका को बायें अंगूठे से बाँधकर सूर्य को देखना सूर्य प्रदर्शनी मुद्रा है। ____ इस मुद्रा का प्रयोग नेत्रों के आराम एवं उनकी ज्योति वृद्धि के लिए प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। प्राचीन ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर इसकी प्रशंसा की गयी है। इस मुद्रा के द्वारा सूर्य देखने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
सूर्य प्रदर्शनी मुद्रा सुपरिणाम
चक्र- अनाहत, विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- आनंद, विशुद्धि एवं ज्ञान केन्द्र ग्रन्थि- थायमस, थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र, स्वर यंत्र, नाक, कान, गला मुँह, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँख।