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हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
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5. नैवेद्य मुद्रा
अर्पण योग्य सामग्री को तीन भागों में बाँट कर तत्त्व मुद्रा द्वारा मन्त्र का उच्चारण करते हुए मिष्ठान्न को निवेदित करना, नैवेद्य
है।
नैवेद्य मुद्रा
मुद्रा
सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस, आनंद एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, रक्त संचरण तंत्र, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, मेरूदण्ड, गुर्दे ।