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184... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
कवचाय मुद्रा
सुपरिणाम
चक्र- मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- शक्ति एवं ज्ञान केन्द्र ग्रन्थि- प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँखें। 3. नेत्रत्रोयेय मुद्रा
यह मुद्रा नेत्रों की रक्षा एवं पवित्रीकरण के उद्देश्य से की जाती है। इस मुद्रा के पीछे अन्तर चक्षुओं को जागृत करने के भाव भी छुपे रहते हैं।
तर्जनी और मध्यमा के द्वारा आवृत्त चक्षुओं को स्पर्शित करना नेत्रत्रोयेय मुद्रा है।
इसका मन्त्र है- “ओम् भुवः नेत्रत्रोयैय वौषट्।"