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172... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में एक है। यह रोग शमन में विशेष रूप से कैन्सर को ठीक करने में उपयोगी
मुद्रा है।
विधि ___ दोनों हथेलियाँ आकाश की ओर अभिमुख हो, हथेलियाँ और कनिष्ठिका की बाह्य किनारी परस्पर मिलती हुई, दोनों अंगूठे कनिष्ठिका अंगुलियों के मूल भाग पर, दायें हाथ की अनामिका बायें हाथ की मध्यमा के नीचे से होती हुई बायीं तर्जनी के प्रथम पोर का स्पर्श करें तथा बायें हाथ की अनामिका दायें हाथ की मध्यमा के नीचे से होती हुई दायीं तर्जनी के प्रथम पोर का स्पर्श करने पर योनि मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा कमर के स्तर पर धारण की जाती है।29 लाभ
चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल तत्त्व केन्द्र- शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र प्रन्थि- प्रजनन ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंगमेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, मल-मूत्र अंग एवं प्रजनन अंग। 29. शंख मुद्रा
शंख, समुद्र में पाया जाने वाला बेइन्द्रिय जीव है। पुराणों के अनुसार विष्णु के चार हाथों में से एक हाथ में शंख होता है। वैद्यक के अनुसार यह नेत्रों के लिए हितकारी, पित्त, कफ, रूधिर विकार, विष विकार, संग्रहणी, वायु, श्वास रोग को नष्ट करने वाला है।
यहाँ शंख मुद्रा अपने समस्त गुणों को अभिव्यक्त एवं साधक में उन विशेषताओं को रूपान्तरित करने की सूचक है। दूसरे दृष्टिकोण से जिस प्रकार पूजा आदि के वक्त शंख ध्वनि प्रसरित कर हर्ष की अभिव्यक्ति एवं वातावरण को निर्मल किया जाता है। उसी प्रकार जाप साधना के अनन्तर इस मुद्रा द्वारा आत्मीय आनन्द को व्यक्त करते हैं। ____ यौगिक परम्परा में यह मुद्रा गायत्री जाप के पश्चात अनुयायियों द्वारा सम्पन्न की जाती है। यह रोग शमन में विशेष उपयोगी है। विधि
बाएं हाथ के अंगूठे को दायीं मुट्ठी में रखें, फिर दायीं मुट्ठी को ऊर्ध्वमुख