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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... संस्थान, रक्त संचरण तंत्र, हृदय, फेफड़ें, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे आदि । 28. योनि मुद्रा
योनि शब्द विविध अर्थों का बोधक है। योनि को उत्पादक कारण, उत्पत्ति स्थान,जननेन्द्रिय, अंत:करण आदि कहते हैं। योनि का एक अर्थ गोपनीय भी है क्योंकि योनि गुप्त रहती है। जैन साहित्य एवं पुराण शास्त्रों के अनुसार सम्पूर्ण लोक में चौरासी लाख जीव योनियाँ है।
प्रस्तुत प्रकरण में योनि का अभिप्राय अंत:करण से होना चाहिए, क्योंकि गायत्री जाप के द्वारा जो ज्ञान और वैराग्य साधक में आविर्भूत हुआ है वह उसके अन्तःकरण में समाहित हो जाये ।
इस मुद्राभिव्यक्ति के माध्यम से साधक अंत:करण को निर्मल, इन्द्रियों को संयमित एवं प्राप्त शक्ति को संग्रहित कर रखने का संकल्प दर्शाता है।
यौगिक परम्परा में गायत्री जाप के पश्चात की जाने वाली 8 मुद्राओं में से
योनि मुद्रा