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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......153
सन्मुखोन्मुखम् मुद्रा
द्वितीय प्रकार में बायें हाथ की मुड़ी हुई अंगुलियाँ नीचे की ओर एवं दायें हाथ की मुड़ी हुई पाँचों अंगुलियाँ ऊपर की ओर रहती है शेष वर्णन पूर्ववत समझें।16 ___ यह मुद्रा छाती के अग्रभाग पर धारण की जाती है। लाभ
• यह मुद्रा आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए भीतरी कोलाहल को समाप्त कर मानसिक एवं आन्तरिक शक्ति देती है।
• विशुद्धि चक्र पर प्रभाव डालते हुए यह मुद्रा शोकहीन, दीर्घजीवी एवं चित्त को शान्त रखती है तथा वाणी को मधुर एवं प्रभावी बनाती है।
• एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह मस्तिष्क सम्बन्धी बीमारियों जैसे बेहोशी, सायनस, मासिक धर्म सम्बन्धी असंतुलन आदि का निवारण करती है।
• इस मुद्रा से त्याग एवं अध्यात्म भाव में वृद्धि होती है।