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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
2. स्थापिनी मुद्रा
अधोमुखी त्वियं चेत्स्यात्स्थापिनी मुद्रिका मता ।
3. सन्निधापनी मुद्रा
उच्छ्रितांगुष्ठमुष्टयोस्तु, संयोगात्सन्निधायि (पि) नी ।।
4. संरोधिनी मुद्रा
वही पृ. 463 देखिये, शारदातिलक 23/108
5. सम्मुखी मुद्रा
अन्तः प्रवेशितांगुष्ठा, सैव संरोधिनी मता ।
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वही पृ. 464 देखिये, शारदातिलक 23/108-109
वही पृ. 464
देखिये, शारदातिलक 23/109
मुष्टिद्वयस्थितांगुष्ठौ संमुखौ तु परस्परम् । संश्लिष्तौवुच्छ्रिष्टां कुर्यात्, सेयं सम्मुखिमुद्रिका ।।
वही पृ. 464 देखिये, शारदातिलक 23/110
6. प्रार्थना मुद्रा
नम्रता या विनय पूर्वक कुछ कहना प्रार्थना कहलाता है। इस मुद्रा के द्वारा देवी-देवताओं के समक्ष अन्तर्भावों का निवेदन किया जाता है।
प्रसृतांगुलिकौ हस्तौ मिथश्लष्टौ च सम्मितौ । कुर्यात्स्वहृदये सेयं, मुद्रा
प्रार्थनिसंज्ञिका ।
वही पृ. 464
दोनों हाथों की अंगुलियों को उर्ध्व दिशा में फैलाकर एवं उन्हें आपस में जोड़कर हृदय के निकट रखना प्रार्थना मुद्रा है ।
7. वासुदेव मुद्रा
वसुदेव के पुत्र श्री कृष्ण वासुदेव कहलाते हैं। यह मुद्रा श्रीकृष्ण को सूचित करती है।
अंजल्यांजलिमुद्रा स्याद्वासुदेवाभिधा च सा ।
वही पृ. 464