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विधि
शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
वक्त्रमुद्रां तथा कृत्वा, तर्जनीभ्यां तु मध्यमे पीडयेद् दंष्ट्रमुद्रेषा, सर्वपाप प्रणाशिनी ।। वक्त्र मुद्रा बनाकर तर्जनियों से मध्यमाओं को दबाना दंष्ट्रा मुद्रा है | 58
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31. दारण मुद्रा
चीर-फाड़ करने की क्रिया अथवा चीरने - फाड़ने के अस्त्र या औजार को दारण कहते हैं। 59
यह मुद्रा भी नरसिंह अवतार से संबंधित तथा उनके द्वारा हिरण्यकश्यप के संहार की सूचक मानी गई है।
इस मुद्रा के द्वारा दुष्ट स्वभावी देवी-देवताओं को अपने वश में किया जाता है।
विधि
मिथः संसृष्ट संमुख्योंगुलिकौ ऋज्वधोग्रकाः । स्वस्थानसरलांगुष्ठौ, मुद्रेयं दारणा मता ।।
दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे के साथ सम्पृक्त कर ऋजुगति से उनके अग्रभागों को अधोमुख करें तथा अंगूठों को अपने स्थान पर सीधा रखना दारण मुद्रा है 160
32. विष्वक्सेन मुद्रा
विष्णु का एक नाम विष्वक्सेन है। मत्स्यपुराण के अनुसार तेरहवें और विष्णु पुराण के अनुसार चौदहवें मनु को भी विष्वक्सेन कहा गया है। भगवान शिव भी इस नाम से संबोधित है। 1 यहाँ प्रस्तुत मुद्रा से अभिप्राय विष्णु अथवा शिव होना चाहिए। यह मुद्रा इन्हीं पुरुषों के स्वरूप को उजागर करती है। विधि
तर्जनीम् ।
नासिकाग्रसमीपस्थां, कृत्वा वामस्य दण्डवद्दक्षिणे कुर्याद्, दक्षिणस्य प्रदेशिनीम् ।।
बायीं तर्जनी को नासाग्र के समीप स्थित करें तथा दायीं तर्जनी को दाहिनी तरफ दण्ड के समान स्थिर करने पर विष्वक्सेन मुद्रा बनती है 1 02