________________
शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
अन्योन्याभिमुखाश्लिष्ट, कनिष्ठानामिका पुनः । तथा च तर्जनीमध्या, धेनुमुद्रा समीरिता ।।
8 धेनु मुद्रा
धेनु मुद्रा का एक नाम अमृतीकरण मुद्रा है। इस मुद्रा से अन्तरंग अमृत तत्त्व की प्राप्ति होती है अतः यह अत्यन्त शुभ कार्यों में की जाती है। विधि
...
...79
दोनों हाथों को आमने-सामने कर दायीं कनिष्ठिका को बायीं अनामिका से और बायीं कनिष्ठिका को दायीं अनामिका से तथा दायीं तर्जनी को बायीं मध्यमा से और बायीं अनामिका को दायीं तर्जनी से आश्लिष्ट करना धेनु मुद्रा कहलाता है। 20
प्रसारितकरांगुली ।
परमीकरणे बुधैः ।।
9. महा मुद्रा
एक प्रकार की सामान्य मुद्रा महामुद्रा कही जा सकती है। हाथों की एक स्थिति को भी महामुद्रा कह सकते हैं।
विधि
अन्योन्यग्रथितांगुष्ठा, महामुद्रेयमुदिता,
दोनों अंगूठों को परस्पर ग्रथित कर शेष अंगुलियों को सीधे फैलाये रखना महामुद्रा है। 21
शारदातिलक तन्त्र पर रचित राघवभट्टीय टीका वर्णित मुद्राएँ
शारदातिलक तन्त्र पर राघवभट्ट ने पदार्थादर्श नामक टीका रची है। उसमें इकतालीस अन्य हस्त मुद्राएँ उद्धृत की गयी है जिनका प्रयोग पूजा काल में देवता के सामने किया जाता है। वे निम्नलिखित हैं
1. मूसल मुद्रा
धान कूटने का औजार मूसल कहलाता है। एक प्रकार का अस्त्र जिसे बलराम धारण करते थे, उसे भी मूसल कहा जाता है। 22 यहाँ मूसल से तात्पर्य अस्त्र विशेष होना चाहिए, क्योंकि टीकाकार ने इस मुद्रा को विघ्न निवारक एवं कष्ट संहारक माना है।