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हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों हेतु प्रयुक्त मुद्राओं... ...63
दायें हाथ को कमर के स्तर पर धारण करते हुए दायीं हथेली नीचे की तरफ, अंगुलियाँ और अंगूठे घूमे हुए रहें। इस प्रकार दोनों हाथ मिलकर किसी पतली वस्तु को धारण करते हैं, वह सर्पकार मुद्रा कहलाती है। 35
लाभ
सर्पकार मुद्रा
चक्र
मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र ।
30. सिंहकर्ण मुद्रा
सिंहकर्ण का शाब्दिक अर्थ होता है सिंह के कान । मुद्रा स्वरूप के अनुसार इस चित्र में सिंह की कर्णेन्द्रिय अथवा उसके मुखभाग को दर्शाने का प्रयास किया गया है। यह मुद्रा हिन्दू परम्परा में सम्पूर्ण सौन्दर्य की अपेक्षा से देखी जाती है।