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हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों हेतु प्रयुक्त मुद्राओं... ...39
एम.जे.एस. के अनुसार यह परम तत्त्व या महासत्त्व के रहस्योद्घाटन की मुद्रा है। इस मुद्रा के दो प्रकार निम्नोक्त हैंप्रथम प्रकार
चिन् मुद्रा का प्रथम प्रकार बनाने के लिए दायीं हथेली को ऊर्ध्वाभिमुख कर अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग को परस्पर में मिलायें तथा शेष अंगुलियों को भूमि से समानान्तर बाहर की ओर फैलायें, इस तरह प्रथम प्रकार की चिन् मुद्रा बनती है।10
इसमें प्रसरित अंगुलियाँ शिथिल रहती है।
चिन् मुद्रा-1
लाभ
चक्र- अनाहत एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायमस एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- आनंद एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण प्रणाली, मस्तिष्क, आँख।