SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 326... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 2. उक्त मुद्राओं को खड़े या बैठे उभय स्थितियों में कर सकते हैं। 3. नमस्कार मुद्राएँ करते समय शरीर स्थिर, सीधा एवं तनाव मुक्त रहे। 4. इन मुद्राओं को शुरू करने के वक्त दोनों हाथों को जोड़कर हृदय (आनन्द केन्द्र) के समीप रखें। मुद्रा की समाप्ति में श्वास छोड़ते वक्त एकाग्र चित्त से ॐ मन्त्र, पंचपरमेष्ठि मंत्र या इच्छित मंत्र का लयबद्ध गुंजन के साथ उच्चारण करें। 5. प्रस्तुत मुद्राओं के लिए तीनों संध्याएँ उपयुक्त हैं। 6. नमस्कार मुद्राओं का अभ्यास इच्छानुसार कितनी भी बार किया जा सकता है। अहँ मुद्रा अर्ह शब्द अर्हता, चरम योग्यता, वीतरागता का बोधक है। चेतना का मूल स्वभाव वीतरागमय भावों में विहरण करना है। इस मुद्रा का ध्येय वीतरागता का साक्षात्कार है। अहं मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy