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________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...325 42. दाहिने हाथ से मुट्ठी बांधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाने से 'खड्ग मुद्रा' होती है। 43. हाथों में संपुट करके कमल के समान अंगुलियों को पद्म (कमल) के समान फैलाकर दोनों मध्यमा अंगुलियों को परस्पर मिलाकर उनके मूल में दोनों अंगूठे लगाने से 'ज्वलन मुद्रा' होती है। 44. मुट्ठी बांधे हुए दाहिने हाथ के मध्यमा, अंगुष्ठ और तर्जनी अंगुलियों को उनके मूल के क्रम से फैलाने से 'दण्ड मुद्रा' होती है। पंच परमेष्ठी मुद्राएँ यौगिक साधना में मुद्रा तन्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भावाभिव्यक्ति के लिए मुद्रा के समकक्ष किसी अन्य प्रयोग की तुलना नहीं की जा सकती है। मुद्राओं के द्वारा अन्तर्भावों को सहज रूप से व्यक्त किया जा सकता है। मुद्राएँ भावों का प्रतिबिम्ब हैं। जैसे भाव होते हैं वैसी ही मुद्रा बन जाती है। जैसी मुद्रा बनाते हैं वैसे ही भाव प्रकट होने लगते हैं। सकारात्मक मुद्राओं के अभ्यास से सकारात्मक भावों का निर्माण होता है और निषेधात्मक मुद्राओं के प्रयोग से नेगेटिव भावनाओं का जन्म होता है। पंच परमेष्ठी मुद्राएँ समग्र रूप से विधायक भावों का पोषण करती हैं। हर एक व्यक्ति में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि बनने की शक्ति समाहित है। इन मुद्राओं के माध्यम से तद्प शक्ति का जागरण होता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में स्वयं की सम्प्रभुता को पाना चाहता है उसे नमस्कार मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान यौगिक क्रिया (पृ. 58) में मुनिवर्य श्री किशनलालजी ने नमस्कार मन्त्र की निम्न पाँच मुद्राओं का उल्लेख किया है जो किंचित विस्तार से निम्न प्रकार है___1. अहँ मुद्रा 2. सिद्ध मुद्रा 3. आचार्य मुद्रा 4. उपाध्याय मुद्रा 5. मुनि मुद्रा निर्देश 1. इन पाँचों मुद्राओं के लिए पद्मासन, वज्रासन एवं सुखासन श्रेष्ठ माने गये हैं। इनमें से किसी एक आसन का चयन करें, अभ्यास के वक्त उसी आसन का प्रयोग हो।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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