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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...291
• शारीरिक स्तर पर इस मुद्रा से कंठ विकार, मानसिक रोग, स्मरण शक्ति, खून की कमी, योनि विकार, गला, मुंह, नाक, कान आदि की समस्या का निराकरण किया जा सकता है।
• शरीरस्थ जल एवं वायु तत्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा, आध्यात्मिक विकास के साथ साधक की कांति और तेजस्विता को बढ़ाती है।
• प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रंथि के स्राव को संतुलित कर यह मुद्रा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन कर साधक में सक्रियता एवं तीव्रता लाती है। कैल्शियम आदि को नियंत्रित करती है तथा कामवृत्ति को नियन्त्रित रखती है। 44. हृदय मुद्रा
इस मुद्रा के द्वारा हृदय को आन्दोलित किया जाता है इसलिए यह हृदय मुद्रा है। यह मुद्रा ध्यान के अवसर पर और प्रतिष्ठा काल में जिनबिंब आदि के हृदय न्यास के अवसर पर प्रयुक्त होती है।
इसका बीज मन्त्र 'म' है।
हृदय मुद्रा