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290... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
43. कुंभ मुद्रा
कुंभ मुद्रा का तीसरा प्रकार भी महत्त्वपूर्ण है। यह मुद्रा जिनालय के ऊपर दंड-कलश का आरोपण करते समय, जिन प्रतिमा एवं गुरु के प्रवेश महोत्सव के समय और सम्मुख कलश ले जाते समय प्रयुक्त होती है। इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'भ' है।
कुंभ मुद्रा
विधि
"
“बद्धमुष्टयोः करयोः संलग्न संमुखांगुष्ठयोः कुंभ मुद्रा । '
दोनों हाथों की बंधी हुई मुट्ठियों को संयोजित कर अंगूठों को एक-दूसरे के सम्मुख करने पर तीसरे प्रकार की कुंभ मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम
• इस कुंभ मुद्रा को धारण करने से स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं। इनके सक्रिय होने से मन शांत होता है। ईर्ष्या, राग-द्वेष आदि न्यून होते हैं और वाणी प्रखर होती है। चिंतन खुलने से साधक विचारक, चिंतक या दार्शनिक बनता है।