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________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...269 त्रिपुरस मुद्रा एक-दूसरे के सम्मुख रहे हुए दोनों हाथों की मध्यमाओं को मशीतवत संस्थापित करने एवं दोनों तर्जनियों को उसके ऊपर कुछ टेढ़ी रखने पर त्रिपुरस मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • यह मुद्रा मणिपुर एवं सहस्रार चक्र को प्रभावित करती है। इन चक्रों के जागरण से संकल्पबल एवं आत्मविश्वास बढ़ता है, मनोविकार घटते हैं और परमार्थ में रुचि जागृत होती है। • शारीरिक समस्याएँ जैसे कि बदबूदार श्वास, शरीर में दुर्गन्ध, जलने आदि के दाग, पुरानी बीमारी, पार्किंसस रोग, पाचन इन्द्रिय का कैन्सर, अन्य पाचन समस्याएँ आदि में यह मुद्रा फायदा करती है। • इस मुद्रा के प्रयोग से अग्नि एवं आकाश तत्त्व संतुलित रहते हैं। यह शरीरस्थ तीनों अग्नियों को जागृत कर ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन करती है तथा हृदय में आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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