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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियों ...255
विधि
चतुर्मुख मुद्रा "कोशाकारौ करौ कृत्वा तर्जनीद्वयाऽनामिकाद्वययोः ऊर्वीकरणे प्रासादवत् करणे अपरांगुली अधोस्थापने चतुर्मुख मुद्रा।"
दोनों हथेलियों को कोशाकार में करके दोनों तर्जनियों और दोनों अनामिकाओं को ऊर्ध्वाभिमुख करें। यहाँ ऊर्ध्वमुख से तात्पर्य गगनचुंबी विशाल भवन के सदृश अंगुलियों को ऊपर की ओर करते हुए शेष अंगुलियों को नीचे की ओर स्थापित करना है। सुपरिणाम
• चक्र विशेषज्ञों के अनुसार चतुर्मुख मुद्रा धारण करने से आज्ञा, अनाहत एवं सहस्रार चक्र जागृत होकर सक्रिय बनते हैं। यह साधक में कलात्मक उमंगों, रसानुभूति एवं कोमल संवेदनाओं का प्रकटन करती है।
• यह मुद्रा अनेक शारीरिक समस्याएँ जैसे ब्रेन ट्यूमर, मिरगी, अनिद्रा, एलर्जी तथा मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, श्वास आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करती है।