SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...247 सुपरिणाम सुपरिणाम काय द्वारा वणि चतुष्कपट मुद्रा • जैनाचार्यों द्वारा वर्णित चतुष्कपट्ट मुद्रा को धारण करने से स्वाधिष्ठान, मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र प्रभावित होते हैं। यह मुद्रा संकल्पबल, पराक्रम, आत्मविश्वास, बलिष्ठता, स्फूर्ति एवं अतीन्द्रिय क्षमता का जागरण करती है। • दैहिक स्तर पर यह मुद्रा गला, मुँह, थायरॉइड, कण्ठ, कंधा, त्वचा, पित्ताशय, पाचन तंत्र, गर्भाशय आदि के विकारों को दूर करते हुए अल्सर, खून की कमी, नपुंसकता, कामुकता, बुखार, योनि विकार आदि में लाभ पहुँचाती है। • जल, अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा प्रतिकूलता से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है तथा शरीरस्थ अग्नि को जागृत कर ऊर्ध्वगमन में सहायक बनती है। प्रजनन, एड्रिनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड, पेराथायरॉइड आदि ग्रंथियों के स्राव को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कामेच्छाओं में तथा व्यवहार आदि पर नियंत्रण रखती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy