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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...245
जैन मुनि ऋषिरत्नजी ने शंख के दो प्रकारों की चर्चा की है। तदनुसार दक्षिणावर्त शंख मुद्रा लक्ष्मी प्राप्ति एवं पुत्र प्राप्ति के निमित्त और मंत्र स्मरण काल में की जाती है तथा वामावर्त शंख मुद्रा प्रतिष्ठा सम्बन्धित मांगलिक आलेख और वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करने निमित्त करते हैं।
शंख मुद्रा का बीज मन्त्र 'इ' है।
दक्षिणावर्ती शंख मुद्रा विधि
"अंगुष्ठद्वय योजने तर्जनी द्वयस्य सृष्टया कुंडलाकार विधाने मध्यमाद्वयं परस्परं (प्रसार्य) संमील्य च दक्षिणावर्त्त शंख मुद्रा। एषैव तर्जनीद्वयस्य संहरणे कुण्डलाकार विधाने वामावर्त्त शंख मुद्रा। ___ दोनों हाथों के अंगूठों को परस्पर योजित कर दोनों तर्जनियों को ढीला छोड़ते हुए उन्हें कुण्डलाकार में बनायें तथा दोनों मध्यमाओं को ऊर्ध्व प्रसरित करते हुए सम्मिलित करने पर दक्षिणावर्त शंख मुद्रा बनती है।