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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...241 जिनेश्वर के वचनों का श्रवण करने से संसारी आत्मा का कल्याण होता है, साधक का सौभाग्य बढ़ता है, आन्तरिक प्रसन्नता में अभिवृद्धि होती है, अत: माना जा सकता है कि मकार मुद्रा का मुख्य प्रयोजन आत्म कल्याण है।
मुद्राविधि के उल्लेखानुसार इस मुद्रा का प्रयोग मंत्र गुणने के प्रसंग पर भी . होता है। मकार मुद्रा का बीज मन्त्र 'म' है। विधि
"तत्रैव नकार मुद्रायां मध्य प्रदेशे दक्षिणांगुष्ठं अर्गलावत स्थाप्यते मकार मुद्रा।"
दोनों हाथों को नकार मुद्रा की भाँति बनाकर हथेली के मध्य भाग में दायें अंगूठे को अर्गला (चिटकनी) की तरह स्थापित करने पर मकार मुद्रा बनती है। सुपरिणाम __ • मकार मुद्रा का प्रयोग मणिपुर एवं अनाहत चक्र को जागृत एवं सक्रिय करने के लिए किया जा सकता है। यह मुद्रा सहनियंत्रण, आत्मविश्वास, प्रेम, भक्ति, परोपकार आदि के भावों का वर्धन करती है।
• भौतिक स्तर पर यह मुद्रा एलर्जी, श्वास विकार, हृदय, फेफड़ा, उदर, लीवर आदि की समस्याओं का शमन करती है।
• अग्नि एवं वायु तत्त्व को नियंत्रित करते हुए यह मुद्रा भीतर में प्रवाहित ऊर्जा का अनुभव करवाती है। सृजनात्मक एवं कलात्मक कार्यों में रुचि का वर्धन करती है।
• थायमस, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक शारीरिक हलन-चलन एवं कार्यप्रणालियों को नियंत्रित रखती है। 5. सिंह मुद्रा
सिंह एक शूरवीर, साहसी और निर्भीक प्राणी है। पशु जगत में इस प्राणी का अद्वितीय प्रभुत्व है। यह पशु योनि में उत्पन्न होने के उपरान्त भी अनेक विलक्षणताओं से युक्त है। जैन परम्परा में सिंहत्व भाव को दर्शाने के लिए सिंह मुद्रा की जाती है।