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________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...237 आदिमंत्र, त्रैलोक्य वर्ण, परमेष्ठि बीज, लोकेश, त्रिमूर्ति, बीजेश, भुवनाधात्री आदि। किंचित ग्रन्थों में ॐ कार को पुरुष प्रणव और ह्रीं कार को प्रकृति प्रणव कहा गया है। इसी वजह से प्राय: मन्त्र नामों के पहले 'ॐ ह्रीं” मंत्राक्षर जोड़े जाते हैं। कुछ ग्रन्थों में आद्यशक्ति या महाशक्ति को ॐकारमयी और ह्रीं कारमयी उभयस्वरूपा माना गया है। अचिन्त्य गुणों से युक्त यह ह्रीं कार मुद्रा पंच परमेष्ठी के स्मरण निमित्त और अन्य सभी कार्यों की सफलता हेतु की जाती है। इसका बीज माया बीज के समान है। ह्रींकार मुद्रा विधि ___“वामांगुष्ठाग्रं दक्षिणांगुष्ठपृष्ठलग्नं, तथा वामतर्जन्यमं दक्षिणांगुष्ठाने संयोज्य, वाममध्यमादक्षिणतर्जनी योजने वामाऽनामिकादक्षिणमध्यमां संयोज्य वामकनिष्ठिकां बिंदुवत्कृत्वा ह्रीं कार मुद्रा।"
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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