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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण...217 पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे शक्ति मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर हस्तांगुलियों के सन्धि सम्बन्धी रोग दूर होते हैं।
हाथों की अंगुलियाँ लचीली बनती हैं जिससे दुःसाध्य कार्य को भी सहज सम्पन्न किया जा सकता है।
इससे हाथों के अवयवों की क्षमता बढ़ती है।
यह मुद्रा पृथ्वी और अग्नि तत्त्व के असंतुलन से संभावित रोगों का शमन करती है।
• आध्यात्मिक दृष्टिकोण से चैतसिक शक्तियाँ अभिव्यक्त होती हैं।
इससे शक्ति और तैजस केन्द्र अपने मूल स्वरूप की प्राप्ति हेतु सक्रिय हो उठते हैं।
यह मुद्रा अन्त:करण में परिवर्तन करती है। इससे सिंह मुद्रा के सुफल भी प्राप्त होते हैं। 15. पाश मुद्रा
पाश का सामान्य अर्थ बंधन है। विधिमार्गप्रपा में भी पाश मुद्रा कही गई है किन्तु आचारदिनकर में उल्लिखित पाश मुद्रा इससे भिन्न स्वरूपवाली है।
__ आचारदिनकर में वर्णित पाश मुद्रा दुष्ट तत्त्वों को स्तम्भित करने के प्रयोजन से की जाती है। विधि
___ "कनिष्ठातर्जन्योर्वज्राकृतीकृतयोर्मध्यमासावित्र्योर्वक्री करणं पाश मुद्रा।' ... दोनों कनिष्ठिका एवं दोनों तर्जनी अंगुलियों को वज्राकृति में करके दोनों मध्यमा एवं दोनों अनामिका अंगलियों को वक्र करने से जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे पाश मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा मस्तिष्क सम्बन्धी रोग, पागलपन, अस्थिरता, शंकाल वृत्ति आदि का निवारण करती है।
इससे हस्तांगुलियों का लचीलापन बढ़ता है।