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210... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 11. कच्छप मुद्रा
कछुआ तिर्यञ्च गति के जलचर जीवों का एक प्रकार है। यह समुद्र तट पर रहता हैं। कछुए के जीवन की कुछ विशेषताएँ मानव को भी नयी प्रेरणा देती है। जैसे कि यह सर्वाङ्ग को सिकोड़कर बैठता है जो प्रतीक रूप में यह संदेश देता है कि आत्मार्थियों को ऐन्द्रिक चंचलता का त्याग करना चाहिए एवं मन को स्थिर रखते हुए अंगों को गुप्त (संयमित) रखना चाहिए।
कछुआ धीरे-धीरे चलता है किन्तु निरन्तर गतिशील रहता है रुकता नहीं, इसी तरह साधक को उत्तरोत्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए। उसकी गति में भले ही धीमापन हो, पर उसमें नैरन्तर्य होना आवश्यक है। नियमित अभ्यास साधारण पुरुष को श्रेष्ठता की श्रेणी में पहँचा देता है। इस सम्बन्ध में कछुआ और खरगोश की कहानी जगप्रसिद्ध है। कछुआ गहरी एवं दीर्घ निद्रा लेता है जो जिन्दगी के श्वासों के नियन्त्रण का सूचक है।
गायत्री जाप में कच्छप मुद्रा का उपयोग होता है। इसे भगवान विष्ण का पाँचवां अवतार माना जाता है। चौबीस तीर्थंकरों का एक लंछन है। मूल नायक
कच्छप मुद्रा