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208... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 10. गणधर मुद्रा
जैनागम कल्पसूत्र के अनुसार एक ही गुरु परम्परा के साधुओं का समूह गण कहलाता है। उस गण को धारण (संचालन) करने वाले गणधर कहलाते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर के शासनकाल में गणधर व्यवस्था जीवन्त रहती है। एक परिभाषा के अनुसार तीर्थंकर उपदिष्ट अर्थ रूप प्रवचन को सूत्र रूप में संकलित करने वाले मुनि गणधर कहलाते हैं। यह शाश्वत नियम है कि तीर्थंकर का उपदेश अर्थ रूप होता है, गणधर उसे सूत्रबद्ध करते हैं। दूसरी परिभाषा के अनुसार तीर्थंकरों के हाथ से प्रथम दीक्षित अथवा प्रमुख शिष्य गणधर कहे जाते हैं। गणधर चौदह पूर्वो के ज्ञाता और तद्भव मोक्षगामी होते हैं। ___ शास्त्रों में गणधर को लब्धि सम्पन्न-लब्धिदाता कहा गया है। गौतम गणधर के जीवन चरित्र में तो इस विषयक घटनाएँ भी प्राप्त होती हैं। एक कवि ने कहा है, “अंगूठे अमृत बसे लब्धि तणा भंडार"। __आचार दिनकर में गणधर मुद्रा को लब्धि प्रदाता कहा गया है। स्पष्ट है कि इस मुद्रा से विशिष्ट लब्धियाँ प्राप्त होती हैं।
गणधर मुद्रा