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________________ 188... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा नियंत्रण करती है तथा लैंगिक समस्याओं एवं शारीरिक तापमान आदि से जुड़ी समस्याओं का शमन करती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा ईड़ा व पिंगला के प्रवाह को संतुलित कर सुषुम्ना को जागृत करने में सहायक बनती है। __ इसके सम्यक प्रयोग से साधक अन्तरंग नाद को स्पष्ट रूप से सुन सकता है। • नाद मुद्रा को धारण करने वाला साधक मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत एवं नियंत्रित कर सकता है। यह साधक को बलशाली ऊर्जा एवं भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है तथा व्यक्तित्व बोध करवाते हुए क्रोध, घृणा, भय, लालसा आदि नकारात्मक भावों का दमन करती है। विशेष • एक्यूप्रेशर मेरीडियनोलोजी के अनुसार यह मुद्रा मस्तिष्क के वात दोष, कफ दोष एवं पित्त दोष को दूर करती है। • इसके दाब बिन्दु से लीवर तथा प्लीहा में ऊर्जा का स्थायित्व होता है। . यह गर्दन से लेकर मस्तिष्क पर्यन्त रोगों में लाभकारी है। • इस मुद्रा के द्वारा पीलिया, कम दिखाई देना, बेचैनी, अनिद्रा, पागलपन, लार अधिक गिरना, मिरगी, बुखार, कपकपी आदि को शान्त किया जा सकता है। 76. बिन्दु मुद्रा संस्कृत के बिन्द शब्द से बिन्दु बना है, जिसका अर्थ तोड़ना या विभाजन करना है। बिन्दु व्यक्तिगत चेतना का मूल केन्द्र है। यह वह मूल बिन्दु है, जहाँ से परम तत्त्व स्वयं को विभिन्न रूपों में प्रकट करता है। बिन्दु का कोई विस्तार नहीं है, यह विस्तार रहित केन्द्र है। इसे संस्कृत ग्रन्थों में चिद्घन कहते हैं। असीम चैतन्यमय चेतना ही इसका मूल है। बिन्दु का अर्थ शून्य या रिक्त भी होता है। बिन्दु का अर्थ और भी स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो यह शून्य का प्रमुख द्वार है। यह शून्य पूर्ण रिक्त नहीं है। इसमें सब शक्तियों का निवास है। योग विज्ञान में बिन्द को बिन्द विसर्ग भी कहते हैं क्योंकि यह बिन्दु अमृत की बूंदों में से एक बूंद है। इसका उद्गम स्थान सहस्रार में है तथा जो सतत्
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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