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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......173 आदि पूर्वाचार्य भी इसी मुद्रा में उपदेश देते हैं। गौतम गणधर आदि की प्रतिमाएँ प्रवचन मुद्रा में भी देखी जाती हैं।
प्रवचन मुद्रा विधि
'दक्षिणांगुष्ठेन तर्जनी संयोज्य शेषांगुलीप्रसारणेन प्रवचन मुद्रा।"
दाएं हाथ का अंगूठा और तर्जनी को संयोजित करते हुए शेष अंगुलियों को प्रसारित करने पर प्रवचन मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा अनिद्रा और तनाव को दूर करती है। श्वास गति को धीमा एवं नियन्त्रित कर श्वास सम्बन्धी रोगों का शमन करती है। इस मुद्रा का सम्पूर्ण स्नायु मण्डल और मस्तिष्क पर हितकारी प्रभाव पड़ता है। यह मुद्रा पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित रखती है। इस मुद्रा के निरन्तर अभ्यास से पागलपन, उन्माद, विक्षिप्तता, अस्थिरता, अन्यमनस्कता,