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162... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 62. क्षेत्रपाल मुद्रा
क्षेत्र अर्थात अधिकृत क्षेत्र विशेष, पाल अर्थात रक्षा करने वाले। स्पष्टार्थ है कि क्षेत्र विशेष के रक्षक देव, क्षेत्र विशेष के अधिष्ठायक देव क्षेत्रपाल कहलाते हैं।
जैन आम्नाय के अनुसार पृथ्वी का सम्पूर्ण भू-भाग देवों से अधिष्ठित है। क्षेत्र विभाग के आधार पर भिन्न-भिन्न क्षेत्र के भिन्न-भिन्न अधिष्ठायक होते हैं। जो देव जिस क्षेत्र के अधिष्ठाता होते हैं उस पृथ्वी पर उनका सर्वाधिकार होता है। सामान्यतया सभी क्षेत्र के अधिष्ठायक जागरूक होते हैं और स्थान की विशेष ख्याति बढ़ाते हैं जैसे शिखरजी तीर्थ के क्षेत्रपाल भोमियाजी, नाकोड़ा तीर्थ के क्षेत्रपाल भेरूजी, महुड़ी तीर्थ के क्षेत्रपाल घण्टाकर्णजी आदि अपने क्षेत्र की प्रतिपल शोभा बढ़ा रहे हैं। ___जैन मुनि कंकड़ जैसी तुच्छ वस्तु को भी 'अणुजाणह जस्सावग्गहो' ऐसा कहते हुए क्षेत्रदेवता की अनुमति पूर्वक मार्ग की वस्तु ग्रहण करते हैं अन्यथा उन्हें सूक्ष्म चोरी का दोष लगता है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में
क्षेत्रपाल मुद्रा