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________________ 160... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा का स्पष्ट उल्लेख है। इससे यह सिद्ध होता है कि भले ही योगिनी साधना का सम्बन्ध मूलतः ब्राह्मण परम्परा से रहा हो, किन्तु कालान्तर में जैन परम्परा में भी वह स्वीकृत हो गई। ___ यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में सामान्यतया इन योगिनियों को आत्म साधना में बाधक या विघ्न उपस्थित करने वाली ही माना गया है, किन्तु सम्यक दृष्टि क्षेत्रपाल (भैरव) के माध्यम से इन्हें वशीभूत किया जा सकता है और यही कारण है कि जैन परम्परा में क्षेत्रपाल उपासना और योगिनी साधना साथ-साथ ही रही है। खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार जिनदत्तसूरि ने भैरव के माध्यम से ही 64 योगिनियों की साधना की थी। विधिमार्गप्रपा में योगिनी मुद्रा और क्षेत्रपाल मुद्रा की चर्चा साथ-साथ की गई है। उक्त वर्णन से प्रमाणित होता है कि योगिनी मुद्रा उन्हें तुष्ट रखने एवं शुभ प्रसंगों में उपस्थित विघ्नों का उपशमन करने के निमित्त की जाती है। योगिनी मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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