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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......133
प्रतिष्ठा आदि में उपयोगी मुद्राएँ 48. अंजलि मुद्रा ____ संस्कृत के 'अंजलि' शब्द में मूल रूप से 'अज्' धातु एवं अलि शब्द का योग है। अज् धातु भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होती हैं। यहाँ सम्मानित करने के अर्थ में व्यवहृत है।
सामान्यत: दोनों हाथों का सम्पुटमय आकार अंजलि कहलाता है। इस मुद्रा को करते वक्त आदर सूचक प्रतिकृति निर्मित होती है। इसलिए इसका नाम अञ्जलि मुद्रा है। ___ यदि अंजलि मुद्रा के सम्बन्ध में गहन चिन्तन करें तो इस मुद्रा के अनेक प्रयोजन स्पष्ट होते हैं। जैसे कि
• लौकिक जीवन में किसी अतिथि विशेष को घर पर आमन्त्रित करने पर अथवा घर पर पधारे हुए अतिथि के सम्मानार्थ यही मुद्रा दिखायी जाती है।
• यह मुद्रा पूज्य पुरुषों एवं देवों के सम्मानार्थ की जाती है अत: यह सम्मानसूचक मुद्रा है।
अंजलि मुद्रा