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________________ विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......99 घण्टा मुद्रा यहाँ प्रश्न उभर सकता है कि इस सृष्टि में अनेक वाद्य यन्त्र हैं, उच्चकोटि के वाद्यनिनादों का तो कोई तोल भी नहीं कर सकता है, उसके बावजूद मन्दिरों में घण्टानाद का ही प्रचलन क्यों? मन्दिर सर्वाधिक पवित्र-पावन स्थल होने से वहाँ अन्य वाद्यों का नाद भी किया जा सकता है? इसके समाधान हेतु यही कहा जा सकता है कि जैसे दुनिया में विभिन्नताएँ हैं, व्यक्तिगत रूचि में विविधताएँ हैं, वैसे ही किसी को हारमोनियम का स्वर तो किसी को तबले का स्वर या सितार का स्वर आदि अच्छे लगते हैं, देवी-देवताओं को घण्टानाद (स्वर) प्रिय है। इसी उद्देश्य से घण्टानाद किया जाता है। यदि प्रति प्रश्न किया जाये कि घण्टानाद ही प्रिय क्यों? इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। इस तथ्य के स्पष्टीकरणार्थ कोई पूछे कि आपको मिठाइयों में लड्ड ही क्यों भाते हैं, तो इसका प्रत्युत्तर नहीं दिया जा सकता। यह व्यक्ति की अपनी पसन्द है। इस तरह घण्टा मुद्रा आत्मिक सुखानुभूति एवं मंगलमय वातावरण निर्मित करने के प्रयोजन से की जाती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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