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________________ विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......93 यह मुद्रा लिम्बिक सिस्टम एवं हाइपोथेलेमस को जागृत कर मस्तिष्क को सक्रिय करती है तथा तत्सम्बन्धी रोगों का शमन करती है। यह अनिद्रा, ब्रेन ट्यूमर, कैन्सर, पाचन की गड़बड़ी, अतिरिक्त वायु, बुखार आदि को भी कम करती है। इससे सूक्ष्म शरीर अनुभूति के स्तर पर उभरता है। • योग साधना की दृष्टि से अहंकार आदि विकारों का नाश होता है । इसका अभ्यास साधक को सांसारिक बन्धनों से मुक्ति दिलाता है। इस मुद्रा से विद्यादायिनी देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है । ब्रह्मचर्य पालन में भी यह मुद्रा अति गुणकारी है। विशेष • सोलह विद्या देवियों में पाँचवीं देवी चक्रेश्वरी है। संभवतः इस मुद्रा का नाम इसी अधिष्ठायिका देवी के नाम पर रखा गया है। • एक्यूप्रेशर यौगिक चक्र के अभिमत में इस मुद्रा से मणिपुर एवं आज्ञा चक्र आदि पर दबाव पड़ता है। इससे साधक को अन्तर्ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह संकल्पबल एवं पराक्रम को बढ़ाती है। इसी के साथ एकाग्रता, निश्चय एवं सफलता में वृद्धि करती है । • एड्रिनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रंथि को सक्रिय कर यह मुद्रा ब्लड प्रेशर, सिरदर्द, पेट की गड़बड़ी, कमजोरी, नपुंसकता, मधुमेह, मासिक धर्म आदि की गड़बड़ी को दूर करती है । स्वभाव एवं मनोवृत्तियों को भी यह नियंत्रित रखती है। 30. पद्म मुद्रा पद्म कमल को कहा जाता है। इस मुद्रा को बनाते समय कमल की पंखुड़ियों जैसा आकार बनता है, इसलिए यह पद्म मुद्रा कहलाती है। स्वभावतः कमल हमेशा खिला रहता है, सुगंध बिखेरता है, चित्त को आकर्षित करता है तथा कीचड़ में उत्पन्न होकर भी निर्लिप्त (कीचड़ से ऊपर) रहता है। उसी तरह प्राणी मात्र का जीवन विराट भावनाओं से विकसित रहे और सद्गुणों से महकता रहे, इस तरह की भावनाएँ पद्म मुद्रा के माध्यम से प्रकट की जाती हैं। योग विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में स्थित सप्तचक्र पद्माकार रूप में ही स्थित हैं। उनमें नीचे से ऊपर के चक्र क्रमशः अधिक-अधिक पंखुड़ियों वाले
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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