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________________ 84... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा इस मुद्राभ्यास से चित्रकला, नृत्यकला, संगीतकला एवं सृजनात्मक कार्यों में विशेष रुचि जागृत होती है। • आध्यात्मिक स्तर पर इसके प्रयोग से अंतर्चेतना जागरूक बनती है। इससे दुर्भावनाएँ समाप्त होकर मन निर्मल बनता है। इस मुद्रा से साधक में अन्तरंग नाद सुनने एवं महसूस करने की क्षमता विकसित होती है। यह नादानुसन्धान की वृत्ति को प्रबल बनाती है। • विविध धार्मिक कार्यों में प्रचलित यह मुद्रा मणिपुर एवं अनाहत चक्र की जागृति में सहायक है। इससे साधक में आत्मविश्वास, ऐन्द्रिक नियंत्रण, सकारात्मक सोच के साथ-साथ अनेक मानवीय गुणों का विकास होता है। विशेष • एक्यूप्रेशर रिफ्लेक्सोलोजी के सिद्धान्तानुसार शंख मुद्रा में अंगूठा एवं कनिष्ठिका को छोड़कर शेष अंगुलियों पर दबाव पड़ता है जिससे दाँतों का दर्द ठीक होता है तथा निम्न रक्तचाप, बड़ी आंत, छोटी आंत सम्बन्धी रोगों का निदान होता है। 26. शक्ति मुद्रा यहाँ शक्ति का तात्पर्य शक्ति से ही है। चित्र में दर्शायी गई इस मुद्रा का स्वरूप देखकर यह अनुमान होता है कि इसमें मध्यमा अंगुली को बाधित कर सभी अंगुलियाँ एक-दूसरे से बंधी हुई हैं जो व्यापक शक्ति को इंगित करती है। सामान्य रूप से एकाकी व्यक्ति के पराजय की कल्पना की जा सकती है किन्तु संगठित शक्ति को पराजित करना कठिन होता है। कहा भी गया है“संगठन ही शक्ति है। इस मुद्रा में ऊर्ध्वाकार स्थित मध्यमा अंगुली ऊर्ध्वाभिमुखी बनने की प्रेरणा देती है। प्रतीक रूप में यह मुद्रा आत्मा के अनन्त शक्तिमान होने की सूचना देती है। चित्रानुसार शक्ति मुद्रा इस तथ्य को भी उद्घाटित करती है कि सोलह विद्या देवियों में दूसरी प्रज्ञप्ति नामक विद्यादेवी परम शक्तिशाली है और जो इसकी पूजादि करेगा वह भी शक्ति का स्रोत बन जायेगा और सुप्त शक्ति को जागृत कर लेगा।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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