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72... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा फेफड़ों को पुष्ट बनाकर दीर्घ आयु प्रदान करती है। हमारी पाँचों इन्द्रियों को
अधिक सक्रिय करती है। इस मुद्राभ्यास से पीयूष ग्रन्थि जागृत होती है। परिणामस्वरूप इसके स्राव से उत्तेजित होकर अन्य ग्रन्थियाँ निर्धारित कार्य के प्रति सचेष्ट बनती हैं। इसके प्रभाव से सिर के बाल एवं हड्डियों के विकास में संतुलन बना रहता है।
• मानसिक तौर पर इस मुद्रा की निरन्तरता से बुद्धि तीक्ष्ण होती है। वैचारिक सन्तुलन बना रहता है और शान्ति प्राप्त होती है, यह मुद्रा मनोबल को दृढ़ करती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा चेतना को ऐन्द्रिक विषयों से विमुक्त कर स्वयं के प्रति संलग्न करती है। विशेष
• एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार इस मुद्रा से अनेक फायदे होते हैं। जैसे कि आँतों के रोग, डायरिया, स्पोन्डिलाइटिस, एलर्जी, मासिक धर्म का रुकना, लू लगना, मूत्राशय का संक्रमण, योनि का बाहर निकलना, मेरुदण्ड का वक्र हो जाना, भूख कम हो जाना, पतले दस्त होना, खाज-खुजली होना, सूजन होना इत्यादि रोगों से छुटकारा मिलता है।
• इस मुद्रा के बिन्दू रुकी हुई ऊर्जा को पुन: प्रवाहित करने में सक्षम हैं। यह मुद्रा नाभि से पाँव तक की गर्मी अथवा गर्मी की कमी से होने वाले रोगों में राहत देती है। 20. त्रासनी मुद्रा ___ त्रासनी संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है भयभीत करना। पूजा-प्रतिष्ठा आदि के शुभ अवसरों पर जो दुष्ट आत्माएँ सत्कर्मों में विघ्न डालती हैं, विक्षेप करती हैं, उनके लिए इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है ताकि दुष्टात्माओं को भयभीत किया जा सके।
___ त्रासनी मुद्रा करते वक्त तर्जनी अंगुली से हथेली पर प्रहार किया जाता है। इसका भावार्थ है कि उन्हें पहले से ही अपने अनिष्ट का फल बताते हुए सावधान करते हैं कि यदि किसी ने इस कार्य में बाधा पहुँचाई या असन्तोष पैदा किया तो बुरी तरह से प्रताड़ित किया जाएगा।
इस मुद्रा में तर्जनी अंगुली से हथेली पर प्रहार करने का ध्येय यह है कि