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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप..
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पर दुष्ट देव निकट नहीं आते, वे दूर से ही अन्यत्र चले जाते हैं। अस्त्र मुद्रा दिखाते हुए विघ्न संतोषी देवों को यह संकेत भी किया जाता है कि इस अनुष्ठान के मध्य किसी तरह की बाधा उत्पन्न करने पर अथवा निर्धारित भूमि के निकट आने पर उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है । इस तरह मुद्राभिव्यक्ति के द्वारा उन्हें सचेत किया जाता है।
प्रतीकात्मक दृष्टि से यह मुद्रा न केवल बाहरी दुष्प्रभावों से व्यक्ति का बचाव करती है अपितु आन्तरिक दुर्भावनाओं से भी मुक्त करती है। इस प्रकार अस्त्र मुद्रा से लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों प्रकार के शत्रुओं का निर्गमन होता है । स्वरूपतः यह मुद्रा शुभ कार्यों को निर्विघ्न रूप से सम्पन्न करने के प्रयोजन से की जाती है।
विधि
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"दक्षिणकरेण मुष्टिं बद्धा तर्जनीमध्यमे प्रसारयेदिति अस्त्र मुद्रा । ' दाहिने हाथ को मुट्ठी के रूप में बांधकर, उसकी तर्जनी और मध्यमा अंगुली को प्रसारित करने पर अस्त्र मुद्रा बनती है।
अस्त्र मुद्रा - 1