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46... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा वाले गेस्ट्रोएटिस सदृश रोगों में विशेष लाभदायी है।
यह मुद्रा जल तत्त्व की कमी से होने वाले दुष्प्रभावों में राहत देती है। लघु मस्तिष्क को सक्रिय बनाती है। इस मुद्रा की मदद से पीयूष ग्रन्थि जागृत होकर अन्य ग्रन्थियों को उत्तेजित करती है ताकि वे अपना-अपना निर्धारित कार्य बराबर कर सकें।
• मानसिक दृष्टि से मनोविकार शान्त होते हैं और मन में शान्ति का अनुभव होता है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा शरीरस्थ पंच प्राणों के प्रवाह को नियमित करके मनुष्य का आध्यात्मिक विकास करती है तथा उसे चिन्तनशील बनाती है। इस मुद्रा से आज्ञा चक्र जागरूक होता है। जिससे दूसरों के मनोभावों को समझने की शक्ति प्रकट होती है। विशेष
• यह मुद्रा तीसरे नेत्र की शक्ति को अक्षुण्ण बनाये रखने के हेतु से कही गई है। योगी पुरुषों ने तीसरे नेत्र की परिकल्पना दोनों भौहों के मध्य भाग में की है और इसे शिवनेत्र कहा है।
• क्षुर मुद्रा में इस केन्द्र बिन्दु पर सर्वाधिक दबाव पड़ता है अतः इस मुद्रा की उपादेयता स्पष्टत: सिद्ध होती है।
• एक्यूप्रेशर रिफ्लेक्सोलोजी के अनुसार इससे पिच्युट्री ग्लैंड एवं मस्तिष्क प्रभावित होता है। इससे चरम एकाग्रता की प्राप्ति की जा सकती है। यह मुद्रा उच्च आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्ध रखती है।
• एक्यूप्रेशर मेरिडियनोलोजी के निर्देशानुसार यह मुद्रा शरीर में विद्यमान अनावश्यक कफ एवं वात दोष को दूर करती है। इससे भावात्मक आचरण में सुधार आता है। 8. अस्त्र मुद्रा
यहाँ अस्त्र का तात्पर्य तीर, आयुध, खड्ग आदि हथियार विशेष से है। आचार्य जिनप्रभसूरि ने अस्त्र मुद्रा का उल्लेख सुरक्षा के सन्दर्भ में किया है।
सामान्यतया शुभ प्रसंगों में विघ्न पैदा करने वाले दुष्ट देवों को अस्त्र मुद्रा दिखाकर भयभीत किया जाता है ताकि वे उपद्रव न कर सकें। अस्त्र मुद्रा दिखाने